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मैं हूं खाकी – दो परिवारों के बीच पिसता न्याय का भगवान, कागज की फाइलों में सिमटते परिवार, बेबस न्याय का भगवान

सूरतगढ़ (प्रदीप कुमार) कहते है कि जीवन मे हर व्यक्ति के लिए हर दिन कुछ नया होता है। कुछ ऐसा ही अनुभव रहा जब दो परिवारों को टूटते हुए और ऐसे रास्ते पर जाते हुए देखा जो रास्ते कभी भी ना मिलते हो। जीवन मे कुछ विचित्र और अलग देखकर अपने आप में बड़ा परेशान व विचित्र अनुभव और सोचने के लिए मजबूर भी हुआ। रातभर सोचा कि आखिर इंसान किस दिशा में जा रहा है। खैर अलग अलग व्यक्ति का अलग अलग मिजाज होता है। ऐसी परिस्थिति में सही गलत का निर्णय करना भी शायद अत्यंत कठिन होता है। ऐसे मामलें देखकर लगता है वाकई इंसान में जज्बा और जुनून और व निर्णय लेने की ताकत हो तो वो हर परिस्थिति से गुजकर सही और गलत का निर्णय कर सकता है।कुछ ऐसा ही हुआ शायद उनके के (खाकी) लिए ये कोई नई बात नही जिन्होंने आज तक न जाने कितने परिवारों को टूटते हुए देखा होगा। खैर बात उन उन दो परिवारों के उन दोनों लोगो की जिन्होंने एक दिन अपने सेंकडो अजीज मित्रो व परिवारजनों के साथ अग्नि के सामने ईश्वर को साक्षी मानते हुए हमेशा के लिए अंतिम समय तक एक दूसरे के साथ रहने का निर्णय करते हुए साथ मरने व जीने की कसमें खाई और समाज के सभी मौजिज लोग और परिवार के वो सभी लोग न जाने उन खुशी के लम्हो के शिरकत करने आए वो मेहमान जिनकी मेहमान नवाजी में उस पिता ने न जाने क्या सोचकर उस नए घर मे बेटी को विदा किया और हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देकर सदा के लिए अपनी बेटी को उस परिवार में सौंप दिया जो अब उसके अपने है। परिवार में होने वाली हर एक छोटी बड़ी बात अब उस घर के उन मेहमानों से होने लगी अब बेटी का घर भी अपना घर और उस घर की तमाम खुशियां अब अपनी लगने लगी । अब अचानक उन खुशियों के बीच एक नया मोड़ आता है। और उस बेटी के पिता की व उस परिवार की न जाने कौनसी कमियां रह गई होगी । शायद अब घर मे हर छोटी छोटी बात पर आपस मे बोलचाल शुरू हो गई और एक बात के लिए माँ बाप के पास फोन और ना जाने क्या क्या। आखिर बात भी होने लगी ऊपर से समाज के उन मौजिज लोगो का भी भय जो उन खुशी के पलों शामिल हुए जिनकी मेहमान नवाजी की होगी। उन सब लोगो से बात छुपाते हुए एक पिता भी बेटी के घर जाता होगा और समझाता भी होगा। पर अब कहानी और जिंदगी को शायद ये सब मंजूर नही होगा । और अब बात न्याय के मंदिर तक चली जाती है। और शायद परिवार और समाज के उन मौजिज लोगो के बीच बात चली आती है। आजतक जिनसे आज तक वो बाते छुपाई । अब बात उन लोगो के पास आती है। जो सुबह उठते ही शायद ये ही सोचते होंगे भी किसी का घर ना उजड़े। खैर बात तो उन दो परिवारों की होती है। अब वो लोग तो ऐसे होते है जिन्हें आज-तक बात का ही पता नही । अब उन अजनबी व्यक्तियों से शुरू होती है परिवार को बचाने की शुरुआत। खैर सब अब अपनी अपनी कोशिश करते हुए थके हारे आखिरी न्याय की उम्मीद लगाए हुए उस न्याय के दरबार में न्याय की आस लगाए हुए आते है

खैर अब बारी होती है उन न्याय के देवताओं की

न्याय करने वाले सबसे बड़ा माना जाता है। सही और गलत को निर्णय करना आज शायद उनके जीवन की अग्नि परीक्षा से कम नही होगी । दरबार सजता है न्याय करने वाले दोनों पक्षों की सुनते है। और जिसकी जो कमी है उसको उसके बारे में भी बताते है। पर शायद उस न्याय करने वाले को कमी दिखती होगी परन्तु उन परिवारों में कोई कमी नही है। अगर कमी है तो कोई मानने को भी तैयार नही है। खैर कमी के बारे में मानते तो शायद बात यंहा तक ना बढ़ती । खैर दोनों परिवार अब अपने को हमेशा के लिए अलग अलग करने व हमेशा के लिए एक दूसरे से दूर होने का ही निर्णय करने के लिए आतुर होते है । तो ऐसे में न्याय की कुर्सी पर बैठने वाला वो भगवान भी अब बेबस नजर आता है। खैर अब बाते आगे बढ़ती बढ़ती उस दहेज में उस बेटी की खुशी में दी हुई हर चीज की आती है। जो उस पिता ने न जाने क्या क्या दांव पर लगाकर अपनो की खुशी के लिए दी होगी। आज वर्षो बाद वो सारा सामान उस न्याय के मंदिर की चौखट पर खुद-बखुद चलकर आ जाता है। जो कल तक एक से घर से दूसरे घर तक मुश्किल से ही चलकर गया होगा। अब बारी होती है बंटवारे की न्याय की कुर्सी पर बैठा वो भगवान उस बात का गवाह बनता है और शायद यह सोचते हुए की मेरे जीवन मे आगे से ऐसे फैसले कभी ना करने पड़े और वो उन पलों का ऐसा गवाह बनता है जो पल शायद उस भगवान की आंखों में रातभर आते होंगे। अब उस पिता की बेटी को दी हुई हर चीज आज उस न्याय के मंदिर की चौखट पर पड़ी है। और शर्म से उस पिता का झुका हुआ चेहरा उसकी तरफ चाहकर भी नही देख पा रहा होगा। आज जो कल तक अपने थे वो भी पराये हो चुके है। और सब अपना अपना सामान लिए अपने घर की तरफ़ निकलते है। और सब लोग एक साथ उस मंदिर से निकलर उन रास्तो पर जाते है जो कभी भी नही मिल पाते है। अब उस न्याय के भगवान का दरबार भी खाली । और एक विवाह के कार्ड से शुरू हुई जिन्दगी आज एक पूरी फाइल बनकर सिमट गई । और उस फाइल में न जाने कितने लोगों की आस उम्मीद और न जाने क्या- क्या सिमट गया। और फिर अगली सुबह होती है उस न्याय के भगवान का दरबार फिर उसी तरह से सजकर तैयार है और दो परिवार आज फिर उन्ही रास्तो से गुजरने को आतुर है। और बेबस न्याय के भगवान के लिए एक भारी भरकम कागजों की फाइल फिर उसी फैसले को फिर से लिखने के लिए तैयार है।

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